ନୂଆ ଲୋଗ-ନାମ ପରିବର୍ତନ
फिरोजाबाद बनेगा चंद्रनगर, नगर निगम से प्रस्ताव पास
उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद का नया नाम चंद्रनगर करने का ऐलान हो गया है । फिरोजाबाद नगर निगम में इस बाबत प्रस्ताव पारित किया गया है । इससे पहले अलीगढ़ का नाम बदलकर हरिगढ़ करने का प्रस्ताव भी पारित हुआ था ।
सुहाग नगरी और चूड़ियों के लिए मशहूर फिरोजाबाद का नाम चंद्रनगर करने का प्रस्ताव गुरुवार को नगर निगम कार्यकारिणी की बैठक में पारित किया गया । 2 साल पहले जिला पंचायत की बैठक में भी यह प्रस्ताव पारित हो चुका है । नगर निगम की बैठक में 12 में कुल 11 कार्यकारिणी सदस्यों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया ।
कार्यकारिणी सदस्यों का कहना है कि फिरोजाबाद का नाम पहले चंद्रनगर ही था । लिहाजा नाम बदला नहीं गया है, बल्कि पहले रखे गए नाम को वापस सम्मान दिया गया है । बोर्ड के समक्ष प्रस्ताव था कि फिरोजाबाद का नाम दोबारा चंद्रनगर कर दिया जाए । लिहाजा इसे अब मंजूरी दे दी गई है । नगर से पारित इस प्रस्ताव को अब अंतिम स्वीकृति के लिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार को भेजा जाएगा । सरकार से मंजूरी मिलते ही फिरोजाबाद का नाम चंद्रनगर हो जाएगा ।
कहा जाता है कि फिरोजाबाद में राजा चंद्रसेन की रियासत थी । इसलिए इस जगह का नाम चंद्रनगर पड़ा । मुगल शासन से पहले 1556 ईस्वी में फिरोजाबाद में राजा चंद्रसेन की यहां रियासत हुआ करती थी । राजा चंद्रसेन महल में प्रजा की समस्या सुनने के साथ शहर में गोपनीय ढंग से घूमते हुए जनता के दुख दर्द को समझने निकलते थे । राजा चंद्रसेन तेजतर्रार योद्धा भी थे । उनकी लोकप्रियता के कारण ही ये चंद्रनगर कहलाया । मौजूदा वक्त में राजा चंद्रसेन का महल खंडहर में बन चुका है और वहां जंगल ही बचा है ।
फिरोजाबाद नाम कैसे पड़ा
कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर के सेनापति फिरोजशाह के नाम पर इस शहर का नाम फिरोजाबाद रखा गया । कहा जाता है कि अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल थे । एक बार वो अपने पितरों का पिंडदान करने जा रहे थे । लेकिन आसफाबाद इलाके में लुटेरों ने उनके काफिले को लूट लिया । इसमें धन दौलत के साथ ऊंट भी लूटे गए ।
टोडरमल ने जब अकबर के दरबार में अपनी कहानी बयां की तो वो आगबबूला हो गए । उन्होंने कहा कि बादशाह अकबर के शासन में उनके ही नवरत्नों से लूट की घटना हो जाना, अपमानजनक है । इस पर अकबर ने सेनापति फिरोज शाह को भेजकर लुटेरों के गिरोहों का भंडाफोड़ किया ।फिर फिरोज शाह ने वहीं डेरा डाल दिया और शहर का नाम फिरोजाबाद पड़ गया । फिर फिरोजशाह की मौत के बाद उसका मकबरा यहीं बना ।
स्रोत : Zee News
राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के नए लोगो में भगवान धन्वंतरि का चित्र और भारत शब्द का उल्लेख
राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) ने अपना लोगो बदल दिया है। लोगो से राष्ट्रीय प्रतीक को हटाकर भगवान धन्वंतरि का चित्र लगाया है। धन्वंतरि देवता को भगवान विष्णु का एक अवतार माना जाता है। उन्हें पुराणों में आयुर्वेद के देवता बताया गया है। नैशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) ने कहा कि, धन्वंतरि का लोगो लगभग एक साल से उपयोग में है। एक अधिकारी ने कहा, ‘पहले, यह काले और सफेद रंग में था, इसलिए प्रिंटआउट में दिखाई नहीं देता था। हमने केवल लोगो के केंद्र में एक रंगीन फोटो का उपयोग किया है।’ वहीं, लोगो में बदलाव का यह कहकर विरोध हो रहा है कि इससे एनएमसी की धर्मनिपेक्ष प्रकृत्ति की हानि होगी।
डब्ल्यूएचओ के लोगो में भी धार्मिक प्रतीक!
एक अन्य अधिकारी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा कि यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रतीक में भी संयुक्त राष्ट्र (UN) के प्रतीक को शामिल किया गया था, जिस पर एक सांप लिपटा हुआ था। सांप लंबे समय से दवा और चिकित्सा पेशे का प्रतीक रहा है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि यह एस्क्लेपियस की कहानी से पैदा हुआ है, जिसे प्राचीन यूनानी चिकित्सा के देवता के रूप में पूजा करते थे और जिसके पंथ में सांपों का उपयोग शामिल था। एनएमसी के लोगो में ‘भारत’ का कोई उल्लेख नहीं है, लेकिन उसने ‘भारत’ शब्द का इस्तेमाल किया है। हालांकि, लोगो में बदलाव को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी।
आईएमए की केरल शाखा ने जताई आपत्ति
भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) की केरल शाखा ने लोगो में बदलाव की आलोचना की। उसने कहा, ‘एनएमसी के लोगो में हालिया बदलाव आधुनिक चिकित्सा बिरादरी को स्वीकार्य नहीं है। नया लोगो गलत संदेश देता है और आयोग के वैज्ञानिक और धर्मनिरपेक्ष स्वभाव को ठेस पहुंचाएगा।’ उसने कहा कि इस फैसले को रद्द कर दिया जाना चाहिए।
कौन हैं भगवान धन्वंतरि ?
भगवान धन्वंतरि भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से 12वें अवतार माने गए हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन हुई थी। इसी तिथि को भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन में से हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। समुद्र मंथन में से चौदह प्रमुख रत्न निकले थे जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए थे। चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरि के एक हाथ में आयुर्वेद ग्रंथ, दूसरे में औषधि कलश, तीसरे में जड़ी बूटी और चौथे में शंख विद्यमान है। इसी के चलते धन त्रयोदशी तिथि भगवान धन्वंतरि को समर्पित है और इस दिन उनकी पूजा की जाती है।
…इसलिए कहे जाते हैं आरोग्य के देवता
शास्त्रों के अनुसार भगवान धन्वंतरी ने ही संसार के कल्याण के लिए अमृतमय औषधियों की खोज की थी। भगवान धन्वंतरि ने ही दुनिया की तमाम औषधियों के प्रभावों के बारे में धन्वंतरि संहिता में लिखा है, जो कि आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। माना जाता है कि महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत ने इन्हीं से आयुर्वेदिक चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त की और आयुर्वेद के ‘सुश्रुत संहिता’ की रचना की।
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